The journey accounts, traveling into infinity, capturing all the feel and beauty,depicting it in more than one ways... यात्रा...मेरे और हर दिल के भीतर की...इस ज़िन्दगी के गहरे अनंत की...यात्रा फिर सतह पर आकर सूरज तक रश्मि की...
Monday 29 October 2012
Sunday 28 October 2012
रस्म अदायगी...
तुम्हारा एक दिन जाना ज़रूरी भी हो
अलविदा न कहना , हम समझ लेंगे
जाना शायद तुम्हारी मजबूरी ही हो
ज़िन्दगी के खेल में मिला चाहे मनचाहा खिलौना ही हो
दिल से न खेलना, हम समझ लेंगे
हमसे खेल खेलना शायद तुम्हारी ज़िन्दगी रही हो
हम पर मचलना चंचलपन ही हो
मन को न संभालना, हम समझ लेंगे
अल्हड़ मन का फिसलना शायद एक रस्म प्रेम की हो
हमें धुंधला कर भूलना ज़रूरी भी हो
कोशिश न करना, हम समझ लेंगे
तुम्हारा रह रह हमें देखना शायद भूलने की कोशिश सी हो
कोशिश न करना, भूलने की
हम बस समझ लेंगे ... भूलने की कोशिश शायद ज़रूरी रस्म अदायगी हो
~Rashmi~
अलविदा न कहना , हम समझ लेंगे
जाना शायद तुम्हारी मजबूरी ही हो
ज़िन्दगी के खेल में मिला चाहे मनचाहा खिलौना ही हो
दिल से न खेलना, हम समझ लेंगे
हमसे खेल खेलना शायद तुम्हारी ज़िन्दगी रही हो
हम पर मचलना चंचलपन ही हो
मन को न संभालना, हम समझ लेंगे
अल्हड़ मन का फिसलना शायद एक रस्म प्रेम की हो
हमें धुंधला कर भूलना ज़रूरी भी हो
कोशिश न करना, हम समझ लेंगे
तुम्हारा रह रह हमें देखना शायद भूलने की कोशिश सी हो
कोशिश न करना, भूलने की
हम बस समझ लेंगे ... भूलने की कोशिश शायद ज़रूरी रस्म अदायगी हो
~Rashmi~
Saturday 20 October 2012
क्या मैं न भूल जाती तुझे...
जो न होती चाह तुझे
तो क्या तू चाहता मुझे
जो दिल की बात सुनी होती ज़िन्दगी ने तेरी
तो क्या यूँ अनसुनी करता तू बात मेरी
जो न होता तुझे ज़रुरत का प्यार
तो क्या होती मेरे दिल की हार
जो न होता तू सयाना इतना
तो क्यों न मुझे मिलता प्यार मेरे प्यार जितना
जो न तुला होता तू ज़िन्दगी के नफे नुक्सान में
तो न मेरी मोहब्बत हलकी बैठती उस तराजू के पलड़े में
और आज भी ...
जो न होती तड़प तुझे
तो क्या यूँ तड़पाता तू मुझे
जो तू भूल गया होता मुझे
तो क्या मैं न भूल जाती तुझे
~Rashmi~
तो क्या तू चाहता मुझे
जो दिल की बात सुनी होती ज़िन्दगी ने तेरी
तो क्या यूँ अनसुनी करता तू बात मेरी
जो न होता तुझे ज़रुरत का प्यार
तो क्या होती मेरे दिल की हार
जो न होता तू सयाना इतना
तो क्यों न मुझे मिलता प्यार मेरे प्यार जितना
जो न तुला होता तू ज़िन्दगी के नफे नुक्सान में
तो न मेरी मोहब्बत हलकी बैठती उस तराजू के पलड़े में
और आज भी ...
जो न होती तड़प तुझे
तो क्या यूँ तड़पाता तू मुझे
जो तू भूल गया होता मुझे
तो क्या मैं न भूल जाती तुझे
~Rashmi~
Friday 19 October 2012
Aha! Zindagi...October 2012
फिर तुम क्यों मरते हो
क्यों जीने के भ्रम को झुठलाते हो
खिलंदड मस्त मौला झूठ के परे
है नफीस नखरेबाज सच
सच...जीने के भ्रम के परे सच
झूठ को झुठलाता सच
ज़िन्दगी के भ्रम के आगे
साफ़ उजला सच
जीते हैं सब ...
फिर तुम क्यों कुछ और तलाशते हो
क्यों जीने के भ्रम को झुठलाते हो
~Rashmi~
Tuesday 16 October 2012
एक अनुत्तरित प्रश्न...
बस एक ...
एक अनसुलझा सवाल
एक अनुत्तरित प्रश्न
...क्यों चले गए तुम
और क्यों आये ही तुम...
एक अनसुलझा सवाल
एक अनुत्तरित प्रश्न
...क्यों चले गए तुम
और क्यों आये ही तुम...
सपनों की सुनहरी दुनिया में, ख्वाहिशों की पतंग उड़ाने
नाज़ुक सी डोरी लेकर,अगिनत इन्द्रधनुषी रंग पिरोने
बारिश की ठंडी फुहारें बरसाने
मेरे बावरे मन को मोर सा नचाने
उस लुप्त हुई सरिता को फिर से नदी बनाने
रेगिस्तान हुई ज़मीं पर फिर हरियाली लहलहाने
अपने में ही खोई रहने वाली आँखों में मुस्कुराने
दर्द में भी हँसते होंठों को कंपकपाने
क्यों...क्यों आये ही तुम
क्या मेरे मौन मन को मृत मान चिता जलाने
या उमंगों की चिंगारी ले, ज़िन्दगी की रौशनी दिखाने
फिर...क्यों चले गए तुम
बस एक
एक अनसुलझा सवाल
एक अनुत्तरित प्रश्न
~Rashmi~
नाज़ुक सी डोरी लेकर,अगिनत इन्द्रधनुषी रंग पिरोने
बारिश की ठंडी फुहारें बरसाने
मेरे बावरे मन को मोर सा नचाने
उस लुप्त हुई सरिता को फिर से नदी बनाने
रेगिस्तान हुई ज़मीं पर फिर हरियाली लहलहाने
अपने में ही खोई रहने वाली आँखों में मुस्कुराने
दर्द में भी हँसते होंठों को कंपकपाने
क्यों...क्यों आये ही तुम
क्या मेरे मौन मन को मृत मान चिता जलाने
या उमंगों की चिंगारी ले, ज़िन्दगी की रौशनी दिखाने
फिर...क्यों चले गए तुम
बस एक
एक अनसुलझा सवाल
एक अनुत्तरित प्रश्न
~Rashmi~
चंचल मन...
न देखने का मन है
न सुनने की धुन है
जा ओ मन से खेलने वाले
अब न ही तेरी तस्वीर रंगने का मन है
न कहनी अब हमें कोई कहानी
न है दिल को कोई कविता सुनानी
अब हम समझे
यूँ ही खेल खेलना तो है तेरी आदत पुरानी
न समझनी है तेरी बातें सयानी
न है गहरी कोई प्रीत जतानी
अब हम बूझे
खूब आती हैं तुझे बातें बनानी
न हम समझे हैं न तुम समझोगे
न संभलेगा, ये तो चंचल मन है
न संभलेगा, ये तो चंचल मन है
न तुमको भूलने का मन है
न तुम्हारा भुलाने का मन है
बस हम ये समझे
यूँ भूलना भुलाना बड़ा मुश्किल जतन है
हम भी समझे,तुम भी समझे
न हम भूले हैं, न तुम भूलोगे
न हम भूले हैं, न तुम भूलोगे
न अभी ... न कभी ...
~Rashmi~
Saturday 13 October 2012
यादों का रंग ...
तुम्हारी यादों का रंग कितना रंगीन है
मेरे यहाँ
बताओ न
मौसम बेरंग या रंगीन है
तुम्हारे वहां
होती बेसाख्ता बारिश है आँखों से जब भी
भीगी हथेलियाँ सूखने लगती हैं
तुम्हारे बिन
बताओ न
तुम्हारी हथेलियों में नमी है अब भी
जब बारिश में तुम्हारी खिड़की खुलती नहीं है
मेरे बिन
तुम्हारी बातों के संग बिना, कितना ग़मज़दा है
मेरा दिल
बताओ न
किसी छोटे से कोने में ज़रा सा भी संजीदा है
तुम्हारा दिल
~Rashmi~
Friday 12 October 2012
अपना सा वो शख्स ...
दौड़ती भागती ज़िन्दगी के आईने में जब दिखा अपना अक्स
बड़ा ही अनजाना अन पहचाना सा लगा वो शख्स ...
न हैं वो लम्बे घुंघराले बाल , जो उलझ पड़ते थे
न वो शर्माती भारी पलकें, जो लरज जाती थीं
न हैं वो सुर्ख होंठ, जो काँप जाते थे
न वो गीली मुस्कान, जो ख़ुशी से बल खाती थी
सहजती संभलती ज़िन्दगी के आईने में फिर जब गौर से देखा अपना अक्स
बड़ा करीब का, पहचाना, अपना सा लगा वो शख्स ...
वो करीनेदार संवरे बाल, घुँघर कुछ कम और कम उलझन
चमकती आँखें, लरज कुछ कम और कम बंधन
वो गहरे गुलाबी होंठ, कुछ कम स्पंदन और कम्पन
उजली मुस्कान, न कुछ कम बस बढाती अपनापन
तब दिखा कि न बदला कुछ ...
वही निश्छल हंसी, साहसी और खनकती
बहुत कुछ कर जाने की चाह भरती
मुक़द्दस जी लेने की आस बंधाती
कभी होठों को छु सुर्ख बनाती
कभी आँखों तक पहुँच उन्हें शर्माती
और बालों के घुँघर को सहला कर
कुछ कम ही पर आज भी उलझा जाती
ज़िन्दगी से लबरेज़ ज़िन्दगी के आईने में जब झिलमिलाता है अपना अक्स
कुछ उलझा सा पर हँसता मुस्कुराता, खुद सा ही लगता है वो शख्स ...
~Rashmi~
बड़ा ही अनजाना अन पहचाना सा लगा वो शख्स ...
न हैं वो लम्बे घुंघराले बाल , जो उलझ पड़ते थे
न वो शर्माती भारी पलकें, जो लरज जाती थीं
न हैं वो सुर्ख होंठ, जो काँप जाते थे
न वो गीली मुस्कान, जो ख़ुशी से बल खाती थी
सहजती संभलती ज़िन्दगी के आईने में फिर जब गौर से देखा अपना अक्स
बड़ा करीब का, पहचाना, अपना सा लगा वो शख्स ...
वो करीनेदार संवरे बाल, घुँघर कुछ कम और कम उलझन
चमकती आँखें, लरज कुछ कम और कम बंधन
वो गहरे गुलाबी होंठ, कुछ कम स्पंदन और कम्पन
उजली मुस्कान, न कुछ कम बस बढाती अपनापन
तब दिखा कि न बदला कुछ ...
वही निश्छल हंसी, साहसी और खनकती
बहुत कुछ कर जाने की चाह भरती
मुक़द्दस जी लेने की आस बंधाती
कभी होठों को छु सुर्ख बनाती
कभी आँखों तक पहुँच उन्हें शर्माती
और बालों के घुँघर को सहला कर
कुछ कम ही पर आज भी उलझा जाती
ज़िन्दगी से लबरेज़ ज़िन्दगी के आईने में जब झिलमिलाता है अपना अक्स
कुछ उलझा सा पर हँसता मुस्कुराता, खुद सा ही लगता है वो शख्स ...
~Rashmi~
Thursday 11 October 2012
रंग...
ज़िन्दगी में,सरेराह चलते चलते
मैं खुद से मिली
जब तुम आ गए आइना बनके
प्रतिबिम्ब अपना दिखा
और खुद से इश्क हो गया
ये श्वेत धवल मन
उजला हुआ तुमसे मिल
ये रंग बिरंग मन
बिखर जाता तेरे बिन
मेरा जो रंग तुझ पर चढ़ा
वो सतरंगी हो मुझ पर उतरा
उस कोरी सी ज़िन्दगी में
हमने एक दूजे का रंग भरा
...इन रंगों को अब फीका पड़ने न देना
मुझे खुद से जुदा अब होने न देना
~Rashmi~
Wednesday 10 October 2012
कुछ मिल गया मुझमे ,,,
कुछ मिल गया मुझमे ,,,
सोचती हूँ सिर्फ बातों से क्या कोई इतना दिल में उतरता है
सिर्फ बातें ही तो करी थी हमने चंद दिनों
फिर क्यों आज भी तुम्हारे जाने के इतने दिनों बाद
हर आहट पर तुम्हारा ही चेहरा तैर आता है
संभल कर दिन बिताने के बाद
दिल जार जार रोता है
सिर्फ बातों से क्या कोई इतना दिल में उतरता है
शायद... तुम मिल गए मुझमे,,,
बातें थी ही इतनी मीठीं
घुल गयीं ज़िन्दगी में मिठास बन कर ,,,
~Rashmi~
सोचती हूँ सिर्फ बातों से क्या कोई इतना दिल में उतरता है
सिर्फ बातें ही तो करी थी हमने चंद दिनों
फिर क्यों आज भी तुम्हारे जाने के इतने दिनों बाद
हर आहट पर तुम्हारा ही चेहरा तैर आता है
संभल कर दिन बिताने के बाद
दिल जार जार रोता है
सिर्फ बातों से क्या कोई इतना दिल में उतरता है
शायद... तुम मिल गए मुझमे,,,
बातें थी ही इतनी मीठीं
घुल गयीं ज़िन्दगी में मिठास बन कर ,,,
~Rashmi~
सुखद अंत...
पढ़ते पढ़ते एक कहानी यूँ ही पढ़ बैठी
दिल में उतर गयी वो सुखद अंत की कथा
सोचते सोचते एक ख्याल सोच बैठी
क्या ऐसा मिलन, उम्मीद का पूरा होना, होता है यहाँ
वो तो थी एक कहानी जो आँखों में पानी ले आई
क्या सच में होता है कि इंतज़ार की इन्तहा होठों पर हंसी ले आये
पात्र में डूबकर रची जाती है रचना
क्या सच में होता है की पात्र को जी ज़िन्दगी पा ले कोई
शायद...नहीं, ज़िन्दगी कोई कहानी है क्या
~Rashmi~
दिल में उतर गयी वो सुखद अंत की कथा
सोचते सोचते एक ख्याल सोच बैठी
क्या ऐसा मिलन, उम्मीद का पूरा होना, होता है यहाँ
वो तो थी एक कहानी जो आँखों में पानी ले आई
क्या सच में होता है कि इंतज़ार की इन्तहा होठों पर हंसी ले आये
पात्र में डूबकर रची जाती है रचना
क्या सच में होता है की पात्र को जी ज़िन्दगी पा ले कोई
शायद...नहीं, ज़िन्दगी कोई कहानी है क्या
~Rashmi~
Tuesday 9 October 2012
रीत...
किसी ने मेरे ग्रह पढ़ कर कहा कि मैं रीत-रिवाज़ मानने वाली लड़की नहीं हूँ...
पर मैं तो रीत का ही प्यार करती हूँ...
इक रीत है
नदी होती है अवतरित
बहाई नहीं जाती
इक रीत है
ग्लेशिअर पिघल कर बहता है
जमाया नहीं जाता
इक रीत है
बादल उमड़ते हैं
बारिश बरसाई नहीं जाती
इक रीत है
मन भीगता है
सुखाया नहीं जाता
वैसी ही इक रीत है
प्यार...
होता है किया नहीं जाता
बहता है जमाया नहीं जाता
उमड़ता है बरसाया नहीं जाता
भीगता है,लाख सुखाये, सुखाया नहीं जाता
है न...ऐसी इक रीत...और रीत का प्यार
पर मैं तो रीत का ही प्यार करती हूँ...
इक रीत है
नदी होती है अवतरित
बहाई नहीं जाती
इक रीत है
ग्लेशिअर पिघल कर बहता है
जमाया नहीं जाता
इक रीत है
बादल उमड़ते हैं
बारिश बरसाई नहीं जाती
इक रीत है
मन भीगता है
सुखाया नहीं जाता
वैसी ही इक रीत है
प्यार...
होता है किया नहीं जाता
बहता है जमाया नहीं जाता
उमड़ता है बरसाया नहीं जाता
भीगता है,लाख सुखाये, सुखाया नहीं जाता
है न...ऐसी इक रीत...और रीत का प्यार
Monday 8 October 2012
कुछ मुझ सा कुछ तुम सा ...
कुछ ढूंढ रही थी ...
झरने के सफ़ेद नीले पानी सा
मस्त बहती समंदर में मिलती नदी सा
सूरज का साया करता सुन्दर बादल के टुकड़े सा
वो शाम से ही झाँक उठते सुन्दर से चाँद सा
हर रात टिमटिमाते परियों की छड़ियों में जड़े सितारों सा
दोस्तों के साथ खाई मुंह में ही घुल जाने वाली पसंदीदा आइसक्रीम सा
माँ के हाथों गुंदे नरम आंटे सा
पिता के लिए चूल्हे पर खास बनी कुरकुरी कड़क ज्वार बाजरे की रोटी सा
छूकर खिल उठे उस नरम दिल की दुआ सा
पूजा के हर मंत्र से उठती श्रद्धा और विश्वास सा
मेरे मन की कुहुकती आवाज़ सा
जब तब अंगड़ाई लेती नज्मों सा
कुछ ज़िन्दगी सा
कुछ मुझ सा कुछ तुम सा
जब तुम दिखे
कुछ ढूंढ रही थी
बस,
खुद को पाया जाता है
हाथ बढ़ा कर लिया नहीं जाता न
जब तब अंगड़ाई लेती नज्मों सा
कुछ ज़िन्दगी सा
कुछ मुझ सा कुछ तुम सा
जब तुम दिखे
कुछ ढूंढ रही थी
बस,
खुद को पाया जाता है
हाथ बढ़ा कर लिया नहीं जाता न
~Rashmi~
कौन जाने ...
कैसा होता है न जिंदा दिल को दफना देना
वो पड़ जाता है नीला और मिट्टी लाल
जो फूल खिलते हैं वो स्याह सफ़ेद
बेलें होती हैं रगों सी हरी
लिपट जाती हैं यादों के पैरों से
जो धुआं धुआं बेरंग से
पहुँच जाते है जब तब
उस कब्र पर जाने क्या चढाने
जाने कौन से जाले हटाने
जाने किस लिखे पर से सूखे पत्ते और धूल हटाने
स्याह सफ़ेद फूलों के बीच लाल गुलाब बिछाने
शायद ये सोच कि दफ़न दिल लाल रंग जायेगा
कब्र में दबा भी सांस ले जी जायेगा
शायद...क्या पता कुछ दिल ऐसे भी जी जाते हैं
~Rashmi~
Subscribe to:
Posts (Atom)