Sunday 28 October 2012

रस्म अदायगी...

तुम्हारा एक दिन जाना ज़रूरी भी हो
अलविदा न कहना , हम समझ लेंगे
जाना शायद तुम्हारी मजबूरी ही हो

ज़िन्दगी के खेल में मिला चाहे मनचाहा खिलौना ही हो
दिल से न खेलना, हम समझ लेंगे
हमसे खेल खेलना शायद तुम्हारी ज़िन्दगी रही हो

हम पर मचलना चंचलपन ही हो
मन को न संभालना, हम समझ लेंगे
अल्हड़ मन का फिसलना शायद एक रस्म प्रेम की हो

हमें धुंधला कर भूलना ज़रूरी भी हो
कोशिश न करना, हम समझ लेंगे
तुम्हारा रह रह हमें देखना शायद भूलने की कोशिश सी हो

कोशिश न करना, भूलने की
हम बस समझ लेंगे ... भूलने की कोशिश शायद ज़रूरी रस्म अदायगी हो

~Rashmi~

5 comments:

  1. भूलने की कोशिश एक रस्म अदायगी....
    वाकई.....
    भूल पाते कहाँ हैं हम....
    बहुत बहुत सुन्दर...

    अनु

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    1. शुक्रिया दी... सच है ...भुलाने की कोशिश सिर्फ कोशिश होती है कामयाब नहीं

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  2. बहुत खूब

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    1. शुक्रिया राकेश जी एवं स्वागत ...

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  3. आपका अनुभव इस कविता में झलकता है और यही हम छोटों के लिए मार्गदर्शन है....!!

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