कुछ ढूंढ रही थी ...
झरने के सफ़ेद नीले पानी सा
मस्त बहती समंदर में मिलती नदी सा
सूरज का साया करता सुन्दर बादल के टुकड़े सा
वो शाम से ही झाँक उठते सुन्दर से चाँद सा
हर रात टिमटिमाते परियों की छड़ियों में जड़े सितारों सा
दोस्तों के साथ खाई मुंह में ही घुल जाने वाली पसंदीदा आइसक्रीम सा
माँ के हाथों गुंदे नरम आंटे सा
पिता के लिए चूल्हे पर खास बनी कुरकुरी कड़क ज्वार बाजरे की रोटी सा
छूकर खिल उठे उस नरम दिल की दुआ सा
पूजा के हर मंत्र से उठती श्रद्धा और विश्वास सा
मेरे मन की कुहुकती आवाज़ सा
जब तब अंगड़ाई लेती नज्मों सा
कुछ ज़िन्दगी सा
कुछ मुझ सा कुछ तुम सा
जब तुम दिखे
कुछ ढूंढ रही थी
बस,
खुद को पाया जाता है
हाथ बढ़ा कर लिया नहीं जाता न
जब तब अंगड़ाई लेती नज्मों सा
कुछ ज़िन्दगी सा
कुछ मुझ सा कुछ तुम सा
जब तुम दिखे
कुछ ढूंढ रही थी
बस,
खुद को पाया जाता है
हाथ बढ़ा कर लिया नहीं जाता न
~Rashmi~
बहुत सुन्दर........
ReplyDeleteब्लॉग भी और रचना भी.....
और रचनाकार भी....
ढेर सारी शुभकामनाएं नए ब्लॉग के लिए...
लेखनी अनवरत चलती रहे...
प्यार-
अनु