Thursday 30 May 2013

खफा नींदें...


वो  देखते हैं
अब
बोलते नहीं
जानते हैं बातों से
नींदें खफा हो जाती हैं

पर  यूँ  भी  तो  है ...

देखते  हैं 
तो
चैन  रूठ  जाता  है
निगाहें  खता  हो  जाती  हैं

मुह  फेरें  तो  कैसे
नूर  नज़रों  से  है
जो  मुड़ते  हैं 
तो
अँधेरे  घने  छा जाते  हैं

चाँद  दीखता  नहीं 
तब
चांदनी  बरसती  नहीं
जानते  हैं
 तारे  गिने  बिन
नींद  आती  नहीं

...नींदें  फिर  खफा  हो  जाती  हैं

~Rashmi~

Monday 27 May 2013

एक शाम ...

उस एक शाम 
कुछ अजीब था  ...

मन खिला पर
आँख उदास
दिल मचला पर
होंठ थे चुप ,
चुपके से झांक रहे थे एहसास,


नज़र से नज़र की
खिड़की में
मैंने बुलाया उन्हें ,थाम के हाथ
मौन में
अनकहे ख्वाबों को सहलाया


संभाला चाँद के आँचल में
जो आँख से
कुछ तारे टपक पड़े
निकले हम तुम टांकने उन्हें
राह में राह तकते ऊंचे दरख्तों पे

आओ एक शाम ,
कुछ अजीब करें
उन दरख्तों के नीचे चलते,
ऊपर झिलमिलाते तारों को
चांदनी के दुपट्टे में टांकें

...आओ
एक शाम फिर कुछ अजीब करें









सितारा


 शाम के धुंधलके में

लाली फैलती है

दिल की गहराईओं से

चांदनी उतरती है



हर इक याद का तारा

ओट से निकलता है

आसमान में झिलमिलाता

 दुपट्टा लहराता है

~Rashmi                                                                   

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