वो देखते हैं
अब
बोलते नहीं
जानते हैं बातों से
नींदें खफा हो जाती हैं
पर यूँ भी तो है ...
देखते हैं
तो
चैन रूठ जाता है
निगाहें खता हो जाती हैं
मुह फेरें तो कैसे
नूर नज़रों से है
जो मुड़ते हैं
तो
अँधेरे घने छा जाते हैं
चाँद दीखता नहीं
तब
चांदनी बरसती नहीं
जानते हैं
तारे गिने बिन
नींद आती नहीं
...नींदें फिर खफा हो जाती हैं
~Rashmi~