फिर तुम क्यों मरते हो
क्यों जीने के भ्रम को झुठलाते हो
खिलंदड मस्त मौला झूठ के परे
है नफीस नखरेबाज सच
सच...जीने के भ्रम के परे सच
झूठ को झुठलाता सच
ज़िन्दगी के भ्रम के आगे
साफ़ उजला सच
जीते हैं सब ...
फिर तुम क्यों कुछ और तलाशते हो
क्यों जीने के भ्रम को झुठलाते हो
~Rashmi~
ReplyDelete......खूबसूरत अंदाज के साथ बेहतरीन रचना
मेरे ब्लॉग पर स्वागत है
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