उस एक शाम
कुछ अजीब था ...
मन खिला पर
आँख उदास
दिल मचला पर
होंठ थे चुप ,
चुपके से झांक रहे थे एहसास,
नज़र से नज़र की
खिड़की में
मैंने बुलाया उन्हें ,थाम के हाथ
मौन में
अनकहे ख्वाबों को सहलाया
संभाला चाँद के आँचल में
जो आँख से
कुछ तारे टपक पड़े
निकले हम तुम टांकने उन्हें
राह में राह तकते ऊंचे दरख्तों पे
आओ एक शाम ,
कुछ अजीब करें
उन दरख्तों के नीचे चलते,
ऊपर झिलमिलाते तारों को
चांदनी के दुपट्टे में टांकें
...आओ
एक शाम फिर कुछ अजीब करें
आँख उदास
दिल मचला पर
होंठ थे चुप ,
चुपके से झांक रहे थे एहसास,
नज़र से नज़र की
खिड़की में
मैंने बुलाया उन्हें ,थाम के हाथ
मौन में
अनकहे ख्वाबों को सहलाया
संभाला चाँद के आँचल में
जो आँख से
कुछ तारे टपक पड़े
निकले हम तुम टांकने उन्हें
राह में राह तकते ऊंचे दरख्तों पे
आओ एक शाम ,
कुछ अजीब करें
उन दरख्तों के नीचे चलते,
ऊपर झिलमिलाते तारों को
चांदनी के दुपट्टे में टांकें
...आओ
एक शाम फिर कुछ अजीब करें
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