Wednesday 2 October 2013

प्यास अनंत ...

मैं नदिया

बह बह, लाती मीठा पानी
तुम रहते खारे

वो बेदिल सूरज
जुदा करे तुमसे

मैं रो रो बरसूँ
बहूँ राह पुरानी

 लाऊँ मीठा पानी
तुम फिर भी रहते
खारे के खारे

बस
मैं रह जाती प्यासी
न बनो न तुम,
इतने खारे

~Rashmi~

1 comment:

  1. तुम नदी भी...बादल भी !!!!
    फिर भी तुमसे अनजान है वो..........बेअसर..........
    :-(

    nice poem !!!
    anu

    ReplyDelete

Visitors