Wednesday 27 August 2014

नया मुकाम


तड़प .. उठती है
सांस अटकती है
दर्द उभर आता है
आँख भर जाती है
रह रह कर
छू जाता है
ज़ख्म…न न दिल !
बस
ये अब भी ज़िंदा है
 कुछ और जीना है
शायद
कोई मुकाम
और पाना है
कुछ और जीना है
शायद
खुद को ही पाना है.…

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